त्यागी और महात्यागी कभी-कभी शांत, एकांत में बैठकर ऐसा विचार करो कि, ओ मनीराम! यह वह घर है कि जिसमें हमारे आने से पूर्व हमारे अनेक पूर्वज आकर जा चुके हैं। कुछ हमारे सामने भी इस परिवार से गए और हमको भी किसी न किसी दिन अवश्य जाना होगा। फिर इतनी आसक्ति क्यों? देखा जाता है कि प्राणी संसार में त्यागी...
लोक व्यवहार की कला सनातन धर्म के शास्त्रों में लिखा है कि जैसा व्यवहार तुम दूसरे से अपने साथ चाहते हो वैसा ही व्यवहार दूसरों के साथ करो। जो व्यवहार तुमको अच्छा नहीं लगता वो दूसरों के साथ भी मत करो। यह वाक्य समस्त संसार में बहुत प्रसिद्ध है। इस वाक्य को हर भाषा में लिखा गया है। यह बिल्कुल सही कहा गया है। हर मनुष्य चाहता है कि...
जहाँ गरीब देश की अधिकांश जनता को पौष्टिक भोजन नहीं मिलता, वहाँ इन जनप्रतिनिधियों के लिए इतने शानशौकत के महल और उसके साथ-साथ अनेक लग्जिरियस तामजाम अलग। इनकी यह व्यवस्था शहनशाहों व राजाओं से भी अधिक भड़कीली होती है। सुविधा इनकी, परन्तु नाम देश की प्रतिष्ठा का लिया जाता है। जिस प्रतिष्ठा का ये बहाना...