प्रकृति का सौंदर्य
प्रकृति का सौंदर्य, नदियों का कल-कल निनाद, सूर्य की इंद्रधनुषी आभा एवं तारों भरा गगन किसी भी तर्क का मुहताज नहीं है। कांट ने अपने दर्शन में प्रकृति के स्वरूप की पहचान के लिए स्थान दिखाया है, ताकि विचारों की उत्क्रुष्टता, समग्रता एवं समृद्धता बनी रहे। भारीतय चिंतन में भी अस्तित्ववादी संकट और बौद्धिकता दोनों का समावेश हुआ है। इसका मुख्य संबंध मानव की पूणर्ता से, उसके अंतिम लक्ष्य से है। यहाँ मानवीय जीवन की सर्वतोमुखी प्रगति, आत्मोत्कर्ष, मनःशांति एवं भौतिक समृद्धि के लिए विचार किया गया है।
The beauty of nature, the murmur of rivers every day, the iridescent aura of the sun and the starry sky do not need any logic. Kant has shown a place in his philosophy for the recognition of the nature of nature, so that the excellence, integrity and richness of ideas remain. Even in Indian thought both existential crisis and intellectualism have been included. Its main concern is with the perfection of man, with his ultimate goal. Here, thoughts have been given for the all-round progress of human life, self-realization, peace of mind and material prosperity.
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लोक व्यवहार की कला सनातन धर्म के शास्त्रों में लिखा है कि जैसा व्यवहार तुम दूसरे से अपने साथ चाहते हो वैसा ही व्यवहार दूसरों के साथ करो। जो व्यवहार तुमको अच्छा नहीं लगता वो दूसरों के साथ भी मत करो। यह वाक्य समस्त संसार में बहुत प्रसिद्ध है। इस वाक्य को हर भाषा में लिखा गया है। यह बिल्कुल सही कहा गया है। हर मनुष्य चाहता है कि...
जहाँ गरीब देश की अधिकांश जनता को पौष्टिक भोजन नहीं मिलता, वहाँ इन जनप्रतिनिधियों के लिए इतने शानशौकत के महल और उसके साथ-साथ अनेक लग्जिरियस तामजाम अलग। इनकी यह व्यवस्था शहनशाहों व राजाओं से भी अधिक भड़कीली होती है। सुविधा इनकी, परन्तु नाम देश की प्रतिष्ठा का लिया जाता है। जिस प्रतिष्ठा का ये बहाना...