ज्ञानियों का अनुभव
ज्ञानियों का यह अनुभव है कि जब तक 'मैं' था, 'उसका' पता नहीं चला और जब 'वह' हुआ, तो मेरा पता नहीं, कारण कि दोनों अपनी आत्यंतिक गहराई में एक हैं। इस तादात्मय के घटित होने में 'अनुभव' की जो अड़चन आ खड़ी होती है, कबीर उसे छोड़ने की सलाह देते हैं। कहते हैं कहीं ऐसा न हो कि समाधि तो लग जाए, पर समाधिसुख बना रहे, ऐसे काम नहीं चलेगा, अनाशक्त होना ही पड़ेगा। इसके बिना पद का अंतिम चरण घटित नहीं हो सकेगा।
It is the experience of the wise that as long as 'I' was there, 'Him' was not known and when 'He' was there, I was not known, because both are one in their ultimate depth. Kabir advises to drop the hindrance of 'experience' that comes in the way of this identification. It is said that it should not happen that the samadhi may take place, but the samadhi remains, it will not work like this, one has to be disabled. Without this the last phase of the post will not happen.
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लोक व्यवहार की कला सनातन धर्म के शास्त्रों में लिखा है कि जैसा व्यवहार तुम दूसरे से अपने साथ चाहते हो वैसा ही व्यवहार दूसरों के साथ करो। जो व्यवहार तुमको अच्छा नहीं लगता वो दूसरों के साथ भी मत करो। यह वाक्य समस्त संसार में बहुत प्रसिद्ध है। इस वाक्य को हर भाषा में लिखा गया है। यह बिल्कुल सही कहा गया है। हर मनुष्य चाहता है कि...
जहाँ गरीब देश की अधिकांश जनता को पौष्टिक भोजन नहीं मिलता, वहाँ इन जनप्रतिनिधियों के लिए इतने शानशौकत के महल और उसके साथ-साथ अनेक लग्जिरियस तामजाम अलग। इनकी यह व्यवस्था शहनशाहों व राजाओं से भी अधिक भड़कीली होती है। सुविधा इनकी, परन्तु नाम देश की प्रतिष्ठा का लिया जाता है। जिस प्रतिष्ठा का ये बहाना...