औषधोपचार
एक माता और उसके शिशु के उदहारण से भी हम ईश्वर के सृष्टि की रचना के सिद्धान्त को समझ सकते हैं। माँ अपने बच्चे की आवश्यकताओं को भली प्रकार जानती व समझती है। उसको स्वच्छ वस्त्र धारण कराती है, उसे उसके शरीर की आवश्यकता के अनुरूप स्वास्थ्यवर्धक व हितकर भोजन कराती है, रोगी होने पर औषधोपचार करती है और नाना प्रकार से उसकी सेवा व रक्षा करती है। यह माँ का स्वाभाविक गुण व धर्म है।
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लोक व्यवहार की कला सनातन धर्म के शास्त्रों में लिखा है कि जैसा व्यवहार तुम दूसरे से अपने साथ चाहते हो वैसा ही व्यवहार दूसरों के साथ करो। जो व्यवहार तुमको अच्छा नहीं लगता वो दूसरों के साथ भी मत करो। यह वाक्य समस्त संसार में बहुत प्रसिद्ध है। इस वाक्य को हर भाषा में लिखा गया है। यह बिल्कुल सही कहा गया है। हर मनुष्य चाहता है कि...
जहाँ गरीब देश की अधिकांश जनता को पौष्टिक भोजन नहीं मिलता, वहाँ इन जनप्रतिनिधियों के लिए इतने शानशौकत के महल और उसके साथ-साथ अनेक लग्जिरियस तामजाम अलग। इनकी यह व्यवस्था शहनशाहों व राजाओं से भी अधिक भड़कीली होती है। सुविधा इनकी, परन्तु नाम देश की प्रतिष्ठा का लिया जाता है। जिस प्रतिष्ठा का ये बहाना...