रहस्यमय
नौवें अध्याय में परम गुह्य ज्ञान देने के बाद भगवान ने अर्जुन से कहा -अर्जुन तू मेरा अतिशय प्रिय है अतएव तेरे हित के लिए मैं मेरे परम रहस्यमय और प्रभावयुक्त अपने स्वरूप को भी बतलाऊँगा, जिसे तू ध्यान से सुन ! हे अर्जुन ! मेरी उत्पत्ति को अर्थात विभूतिसहित लीला से प्रकट होने को न देवता लोग जानते हैं और न ही महर्षिजन जानते हैं, क्योंकि मैं सब प्रकार से देवताओं और महर्षियों का भी आदि कारण हूँ। केवल ज्ञानीजन ही मुझे अनादि और अजन्मा समझकर मुझे तत्व से जानते हैं।
After giving the ultimate secret knowledge in the ninth chapter, God said to Arjuna - Arjuna, you are very dear to me, so for your benefit, I will also tell my most mysterious and effective form, which you listen carefully! Hey Arjun! Neither the deities nor the great sages know my origin, that is, my manifestation from pastimes with Vibhuti, because I am the original cause of all the gods and great sages. Only the wise understand Me as eternal and unborn and know Me in essence.
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लोक व्यवहार की कला सनातन धर्म के शास्त्रों में लिखा है कि जैसा व्यवहार तुम दूसरे से अपने साथ चाहते हो वैसा ही व्यवहार दूसरों के साथ करो। जो व्यवहार तुमको अच्छा नहीं लगता वो दूसरों के साथ भी मत करो। यह वाक्य समस्त संसार में बहुत प्रसिद्ध है। इस वाक्य को हर भाषा में लिखा गया है। यह बिल्कुल सही कहा गया है। हर मनुष्य चाहता है कि...
जहाँ गरीब देश की अधिकांश जनता को पौष्टिक भोजन नहीं मिलता, वहाँ इन जनप्रतिनिधियों के लिए इतने शानशौकत के महल और उसके साथ-साथ अनेक लग्जिरियस तामजाम अलग। इनकी यह व्यवस्था शहनशाहों व राजाओं से भी अधिक भड़कीली होती है। सुविधा इनकी, परन्तु नाम देश की प्रतिष्ठा का लिया जाता है। जिस प्रतिष्ठा का ये बहाना...