आत्म कल्याण
सद्गुरु की प्राप्ति से ही आत्मकल्याण का पथ प्रशस्त होता है। जो जीवन को अमृत से भर दे, ह्रदय के घने अंधकार को हटाकर उसे ज्योतिर्मय कर दे और सांसारिक आकर्षणरूपी राग को मिटाकर ईश्वर के प्रति अनुरागी बना दे वही सद्गुरु है। सद्गुरु के मिलने से वैराग्य का भाव पनपने लगता है। वैराग्य अर्थात् विशेष राग। संसार के मोह-मायारूपी रोगों से ईश्वर का अनुराग अधिक आकर्षक होता है और यही सच्चा वैराग्य है। जो वैराग्य दे, ईश्वर की ओर उन्मुख कर दे ऐसे सद्गुरु के लिए ही गुरु नानक ने सौ-सौ जन्म चुकाने का उपदेश दिया है।
The path of self-welfare is paved only by the attainment of a Sadguru. The one who fills the life with nectar, removes the dense darkness of the heart and illuminates it and removes the attachment of worldly attraction and makes one devoted to God, that is Sadguru. By meeting Sadguru, the feeling of disinterest starts to flourish. Disinterest means special attachment. The affection of God is more attractive than the diseases of worldly attachment and this is the true disinterest. Guru Nanak has preached to repay hundred births only for such a Sadguru who gives disinterest, turns one towards God.
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लोक व्यवहार की कला सनातन धर्म के शास्त्रों में लिखा है कि जैसा व्यवहार तुम दूसरे से अपने साथ चाहते हो वैसा ही व्यवहार दूसरों के साथ करो। जो व्यवहार तुमको अच्छा नहीं लगता वो दूसरों के साथ भी मत करो। यह वाक्य समस्त संसार में बहुत प्रसिद्ध है। इस वाक्य को हर भाषा में लिखा गया है। यह बिल्कुल सही कहा गया है। हर मनुष्य चाहता है कि...
जहाँ गरीब देश की अधिकांश जनता को पौष्टिक भोजन नहीं मिलता, वहाँ इन जनप्रतिनिधियों के लिए इतने शानशौकत के महल और उसके साथ-साथ अनेक लग्जिरियस तामजाम अलग। इनकी यह व्यवस्था शहनशाहों व राजाओं से भी अधिक भड़कीली होती है। सुविधा इनकी, परन्तु नाम देश की प्रतिष्ठा का लिया जाता है। जिस प्रतिष्ठा का ये बहाना...