त्यागी और महात्यागी
कभी-कभी शांत, एकांत में बैठकर ऐसा विचार करो कि, ओ मनीराम! यह वह घर है कि जिसमें हमारे आने से पूर्व हमारे अनेक पूर्वज आकर जा चुके हैं। कुछ हमारे सामने भी इस परिवार से गए और हमको भी किसी न किसी दिन अवश्य जाना होगा। फिर इतनी आसक्ति क्यों? देखा जाता है कि प्राणी संसार में त्यागी होकर आता है और महात्यागी होकर जाता है। तात्पर्य यह है कि जब जीव माता के पेट से पैदा हुआ तो कोई प्राणी या पदार्थ साथ लेकर पैदा नहीं हुआ। यहाँ तक कि तन पर लंगोटी भी नहीं थी। नंगा शरीर लेकर संसार में पैदा हुआ, इसलिए त्यागी होकर संसार में आया किंतु संसार से जाते समय महात्यागी होकर जाता है क्योंकि पैदा होते समय भले ही प्राणी पदार्थ साथ नहीं लाया था, रूपए-पैसा साथ नहीं लाया, वस्त्राभूषण साथ नहीं लाया किन्तु शरीर को साथ लाया था किन्तु संसार से जाते समय तो शरीर भी यहीं छोड़कर चला जाता है। इसलिए कहा है कि जीव संसार में त्यागी होकर आता है और महात्यागी होकर संसार से जाता है। अतः घर को घर समझकर मत रहो अपितु धर्मशाला समझकर रहो।
ऐसा विचार किया करो कि इस जन्म से पहले इस परिवार से सम्बन्धनहीं था और इस शरीर के छूटन के पश्चात फिर नहीं रहेगा।
A creature comes into this world as a renunciate and leaves this world as a great renunciate. The meaning is that when a creature is born from the womb of the mother, it does not take any creature or thing with it. It does not even have a loincloth on its body. It is born with a naked body, therefore it comes into this world as a renunciate but while leaving this world it leaves this world as a great renunciate because although at the time of birth it did not bring any thing with it, did not bring any money, did not bring any clothes or ornaments but it brought its body with it but while leaving this world it leaves its body here and goes away. That is why it is said that a creature comes into this world as a renunciate and leaves this world as a great renunciate. Therefore, do not live in the house as a home but live in the house as a Dharamshala.
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त्यागी और महात्यागी कभी-कभी शांत, एकांत में बैठकर ऐसा विचार करो कि, ओ मनीराम! यह वह घर है कि जिसमें हमारे आने से पूर्व हमारे अनेक पूर्वज आकर जा चुके हैं। कुछ हमारे सामने भी इस परिवार से गए और हमको भी किसी न किसी दिन अवश्य जाना होगा। फिर इतनी आसक्ति क्यों? देखा जाता है कि प्राणी संसार में त्यागी...
लोक व्यवहार की कला सनातन धर्म के शास्त्रों में लिखा है कि जैसा व्यवहार तुम दूसरे से अपने साथ चाहते हो वैसा ही व्यवहार दूसरों के साथ करो। जो व्यवहार तुमको अच्छा नहीं लगता वो दूसरों के साथ भी मत करो। यह वाक्य समस्त संसार में बहुत प्रसिद्ध है। इस वाक्य को हर भाषा में लिखा गया है। यह बिल्कुल सही कहा गया है। हर मनुष्य चाहता है कि...
जहाँ गरीब देश की अधिकांश जनता को पौष्टिक भोजन नहीं मिलता, वहाँ इन जनप्रतिनिधियों के लिए इतने शानशौकत के महल और उसके साथ-साथ अनेक लग्जिरियस तामजाम अलग। इनकी यह व्यवस्था शहनशाहों व राजाओं से भी अधिक भड़कीली होती है। सुविधा इनकी, परन्तु नाम देश की प्रतिष्ठा का लिया जाता है। जिस प्रतिष्ठा का ये बहाना...