विद्या का उद्देश्य
छात्र में ऐसे संस्कारों एवं साहस को विकसित करना पड़ेगा कि वह विवेक और तथ्य का सहारा लेकर यथार्थता की तह तक पहुँच सके। सभी तरह के भ्रम-जंजालों के आवरण चीरकर जो लोग सत्य को समझने स्वीकार करने में तत्पर हो सकें, ऐसी ऋतम्भरा-प्रज्ञा को प्रसुप्ति से विरतकर सक्रिय जागरण में संलग्न करना ही विद्या का मूलभूत उद्देश्य है। यदि हमने ऐसा कुछ सीखने को नहीं मिलता, हमारे अंतःकरण में सुसंस्कारों का संवर्द्धन नहीं होता, तो शिक्षा कैसे पूरी हुई ?
Such values and courage will have to be developed in the student so that he can reach the bottom of reality by taking the help of discretion and facts. The basic purpose of education is to engage such people who are ready to understand and accept the truth by ripping off the cover of all kinds of illusions and nets, and engaging such Ritambhara-Pragya in active awakening. If we don't get to learn something like this, if we don't have good values in our conscience, then how is the education completed?
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लोक व्यवहार की कला सनातन धर्म के शास्त्रों में लिखा है कि जैसा व्यवहार तुम दूसरे से अपने साथ चाहते हो वैसा ही व्यवहार दूसरों के साथ करो। जो व्यवहार तुमको अच्छा नहीं लगता वो दूसरों के साथ भी मत करो। यह वाक्य समस्त संसार में बहुत प्रसिद्ध है। इस वाक्य को हर भाषा में लिखा गया है। यह बिल्कुल सही कहा गया है। हर मनुष्य चाहता है कि...
जहाँ गरीब देश की अधिकांश जनता को पौष्टिक भोजन नहीं मिलता, वहाँ इन जनप्रतिनिधियों के लिए इतने शानशौकत के महल और उसके साथ-साथ अनेक लग्जिरियस तामजाम अलग। इनकी यह व्यवस्था शहनशाहों व राजाओं से भी अधिक भड़कीली होती है। सुविधा इनकी, परन्तु नाम देश की प्रतिष्ठा का लिया जाता है। जिस प्रतिष्ठा का ये बहाना...