निष्काम कर्म
भगवन कृष्ण भी गीता -3/7 में हमें निष्काम कर्म करने की प्रेरणा दे रहे हैं - जो पुरुष मन से इंदिर्यों को वश में करके अनासक्त हुआ कर्मयोग का आचरण करता है, वही श्रेष्ठ है। सचमुच निष्काम कर्म ही कर्मयोगी है। यह पृथ्वी सोने के फूलों वाली है और ये फूल तीन लोगों को मिलते है - वीर पुरुष, विद्या में निपुण और सेवा करने वाले। व्यक्ति कर्म तो करता है, पर कोई कर्म, कोई कर्मफल उसे न तो हँसाते हैं, न ही रुलाते हैं, न ही हर्षित करते हैं न ही दुःखी करते हैं। वह इन सभी प्रकार के बंधनों को तोड़कर जीवनमुक्त हो जाता है व मुक्ति का अधिकारी हो जाता है। ऐसी स्थिति उन योगियों की होती है, जो जो शुभ-अशुभ, पाप-पुण्य दोनों प्रकार के कर्मों एवं कर्मफलों से अनासक्त हो जाते हैं, मुक्त हो जाते हैं।
Lord Krishna is also inspiring us in Gita-3/7 to do nishkama karma - the man who practices Karmayoga by controlling the senses with the mind, he is the best. Truly selfless action is a karma yogi. This earth is of gold flowers and these flowers are available to three people - brave men, skilled in learning and serving. A person does work, but no action, no action, neither makes him laugh, nor make him cry, neither makes him happy nor sad. He breaks all these bondages and becomes free from life and becomes entitled to liberation. Such is the condition of those yogis who become free from both good and bad, sinful and virtuous actions and their results.
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लोक व्यवहार की कला सनातन धर्म के शास्त्रों में लिखा है कि जैसा व्यवहार तुम दूसरे से अपने साथ चाहते हो वैसा ही व्यवहार दूसरों के साथ करो। जो व्यवहार तुमको अच्छा नहीं लगता वो दूसरों के साथ भी मत करो। यह वाक्य समस्त संसार में बहुत प्रसिद्ध है। इस वाक्य को हर भाषा में लिखा गया है। यह बिल्कुल सही कहा गया है। हर मनुष्य चाहता है कि...
जहाँ गरीब देश की अधिकांश जनता को पौष्टिक भोजन नहीं मिलता, वहाँ इन जनप्रतिनिधियों के लिए इतने शानशौकत के महल और उसके साथ-साथ अनेक लग्जिरियस तामजाम अलग। इनकी यह व्यवस्था शहनशाहों व राजाओं से भी अधिक भड़कीली होती है। सुविधा इनकी, परन्तु नाम देश की प्रतिष्ठा का लिया जाता है। जिस प्रतिष्ठा का ये बहाना...