मृत्युजंय शहीद रामप्रसाद बिस्मिल की अंतिम इच्छा
आज १९ दिसम्बर १९२७ को निन्मलिखित पक्तियों का उल्लेख कर रहा हूं जबकि १९ दिसम्बर, १९२७ ई. सोमवार (पौष कृष्णा ११ सम्वत् १९८४ वि.) को साढ़े छह बजे प्रातःकाल इस शरीर को फांसी पर लटका देने की तिथि निश्चित हो चुकी है। अतएव नियत समय पर इहलीला संवरण करनी होगी। यह सर्वशक्तिमान प्रभु की लीला है। सब कार्य उसकी इच्छानुसार ही होते है। यह परमपिता परमात्मा के नियमों का परिणा है कि किसी प्रकार किसको शरीर त्यागना होता है। मृत्यु के सकल उपक्रम निमित्त हैं। जबतक कर्म क्षय नहीं होता, आत्मा को जन्म मरण के बन्धन में पड़ना ही होता है, यह शास्त्रों का निर्णय है। यद्दपि यह बात परब्रह्म ही जानता है कि किन कर्मों के परिणाम स्वरुप कौन सा शरीर इस आत्मा को ग्रहण करना होगा किन्तु अपने लिए यह दृढ़ निश्चय है कि मैं उत्तम शरीर धारण कर नवीन शक्तियों सहित अति शीघ्र पुनः भारतवर्ष में ही किसी निकटवर्ती सम्बन्धी या इष्टमित्र के गृह जन्म ग्रहण करूंगा, क्योंकि मेरा जन्म जन्मान्तर उद्देश्य रहेगा कि मनुष्य मात्र को सभी प्रकृति पदार्थों पर समानधिकार हो। कोई किसी पर हुकूमत नहीं करे। सारे संसार में जनतंत्र की स्थापना हो। वर्तमान समय में भारतवर्ष की अवस्था बड़ी शोचनीय है। अतएव लगातार कई जन्म इसी देश में जन्म ग्रहण करने होंगे और जब तक की भारतवर्ष में नर-नारी पूर्णतया स्वरूपेण स्वतन्त्र न हो जाएं, परमात्मा से मेरी यही प्रार्थना होगी कि वह मुझे इसी देश में जन्म दें।, ताकि उसकी पवित्र 'वेदवाणी' का अनुपम घोष मनुष्य मात्र के कानों तक पहुंचाने में समर्थ हो सकूं।
सम्भव है कि में मार्ग निर्धारण में भूल करूं, पर इसमें मेरा कोई दोष नहीं , क्योंकि मैं भी तो अल्पज्ञ जिव ही हू। भूल न करना केवल सर्वज्ञ से ही सम्भव है। हमें परिस्थितियों के अनुसार ही सब कार्य करने पड़े और करने होंगे। परमात्मा अगले जन्म में सुबुद्धि प्रदान करें ताकि मैं जिस मार्ग का अनुसरण करूं, वह त्रुटि रही ही हो।
यदि देश-हित मरना पड़े; मुझको सहस्त्रों बार भी।
तो भी न मैं इस कष्ट को; निज ध्यान में लाऊं कभी ||
हे ईश भारतवर्ष में' शत बार मेरा जन्म हो,
कारण सदा ही; मृत्यु का देशोपकार कर्म हो ||
मरते 'बिस्मिल' रोशन, लहरी, अश्फाक अत्याचार से।
होंगे पैदा सैकड़ों इनके, रुधिर की धार से || - सरला ठुकराल
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Till karma is not lost, the soul has to fall in the bond of birth and death, this is the decision of the scriptures. Though only Brahman knows which body will have to accept this soul as a result of the deeds, but it is a firm determination for myself that I will be able to wear a good body and with new powers, very soon again in India, in the vicinity of a close relative or friend. I will take home birth, because my birth purpose will be that human beings should have the right over all nature's substances.
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लोक व्यवहार की कला सनातन धर्म के शास्त्रों में लिखा है कि जैसा व्यवहार तुम दूसरे से अपने साथ चाहते हो वैसा ही व्यवहार दूसरों के साथ करो। जो व्यवहार तुमको अच्छा नहीं लगता वो दूसरों के साथ भी मत करो। यह वाक्य समस्त संसार में बहुत प्रसिद्ध है। इस वाक्य को हर भाषा में लिखा गया है। यह बिल्कुल सही कहा गया है। हर मनुष्य चाहता है कि...
जहाँ गरीब देश की अधिकांश जनता को पौष्टिक भोजन नहीं मिलता, वहाँ इन जनप्रतिनिधियों के लिए इतने शानशौकत के महल और उसके साथ-साथ अनेक लग्जिरियस तामजाम अलग। इनकी यह व्यवस्था शहनशाहों व राजाओं से भी अधिक भड़कीली होती है। सुविधा इनकी, परन्तु नाम देश की प्रतिष्ठा का लिया जाता है। जिस प्रतिष्ठा का ये बहाना...