प्रेम ही परमेश्वर
'प्रेम ही परमेश्वर है। ' प्रेम करने वाला जहाँ शून्य हो जाता है, वहीँ परमात्मा प्रकट होता है। अपने अनंत-अनंत रूपों में उसकी वास्तविकता प्रकट होने लगती है। जहाँ हम स्वयं को खो देते हैं, वहीँ उसकी वीणा बज उठती है। उसके अनंत स्वर अस्तित्व को घेर लेते हैं। यह ऐसी विलक्षण अनुभूति है, जिसे कहने के लिए पाने वाला नहीं बचता। प्रेम को जानने वाला उसे जानने में खो जाता है, उसी में पिघल जाता है, बह जाता है। बोलने के लिए बचता ही नहीं। प्रेम एक ऐसी गेंद है, जिसे जितनी जोर से फेंका जाए वह उतनी ही जोर से वापस हमारी ओर आती है।
'Love is God. Where the loving person becomes emptiness, there God appears. His reality begins to manifest in its infinite-infinite forms. Where we lose ourselves, his veena rings. Its infinite voices surround existence. This is such a wonderful feeling, which the recipient is not left to say. The one who knows love gets lost in knowing it, melts in it, flows away. There is nothing left to speak. Love is such a ball, the harder it is thrown, the stronger it comes back towards us.
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लोक व्यवहार की कला सनातन धर्म के शास्त्रों में लिखा है कि जैसा व्यवहार तुम दूसरे से अपने साथ चाहते हो वैसा ही व्यवहार दूसरों के साथ करो। जो व्यवहार तुमको अच्छा नहीं लगता वो दूसरों के साथ भी मत करो। यह वाक्य समस्त संसार में बहुत प्रसिद्ध है। इस वाक्य को हर भाषा में लिखा गया है। यह बिल्कुल सही कहा गया है। हर मनुष्य चाहता है कि...
जहाँ गरीब देश की अधिकांश जनता को पौष्टिक भोजन नहीं मिलता, वहाँ इन जनप्रतिनिधियों के लिए इतने शानशौकत के महल और उसके साथ-साथ अनेक लग्जिरियस तामजाम अलग। इनकी यह व्यवस्था शहनशाहों व राजाओं से भी अधिक भड़कीली होती है। सुविधा इनकी, परन्तु नाम देश की प्रतिष्ठा का लिया जाता है। जिस प्रतिष्ठा का ये बहाना...