आत्मज्ञानरूपी प्रकाश
मनुष्य जीवन ईश्वर की एक अनुपम सौगात है, इसमें सब कुछ समाया हुआ है। मनुष्य अपने को जान लेता है तो वह सब कुछ जान लेता है। अपने को जानने के क्रम में उसके भीतर अनेक प्रश्न उभरते हैं, लेकिन जब तक वह अपने को संपूर्ण रूप से जाना नहीं जाता, अनुभव नहीं कर लेता, तब तक उसके प्रश्नों का भी संपूर्ण समाधान नहीं हो पाता। प्रश्नों की यह डोर तभी चुकती है, जब वह आत्मस्थ हो जाता है। आत्मज्ञानरूपी प्रकाश के उजाले में उसके अंधकाररूपी सभी प्रश्न स्वतः विलीन हो जाते हैं।
Human life is a unique gift of God, everything is included in it. When a man knows himself, he knows everything. In the course of knowing himself, many questions arise within him, but until he does not know, experience himself completely, then his questions also cannot be fully resolved. This thread of questions ends only when he becomes self-sufficient. In the light of the light of self-knowledge, all his questions of darkness automatically disappear.
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लोक व्यवहार की कला सनातन धर्म के शास्त्रों में लिखा है कि जैसा व्यवहार तुम दूसरे से अपने साथ चाहते हो वैसा ही व्यवहार दूसरों के साथ करो। जो व्यवहार तुमको अच्छा नहीं लगता वो दूसरों के साथ भी मत करो। यह वाक्य समस्त संसार में बहुत प्रसिद्ध है। इस वाक्य को हर भाषा में लिखा गया है। यह बिल्कुल सही कहा गया है। हर मनुष्य चाहता है कि...
जहाँ गरीब देश की अधिकांश जनता को पौष्टिक भोजन नहीं मिलता, वहाँ इन जनप्रतिनिधियों के लिए इतने शानशौकत के महल और उसके साथ-साथ अनेक लग्जिरियस तामजाम अलग। इनकी यह व्यवस्था शहनशाहों व राजाओं से भी अधिक भड़कीली होती है। सुविधा इनकी, परन्तु नाम देश की प्रतिष्ठा का लिया जाता है। जिस प्रतिष्ठा का ये बहाना...