लियो टॉल्स्टाय
रूस के संत, सुधारक, साहित्यकार श्री लियो टॉल्स्टाय ने भी इस सत्य का अनुभव किया और लिखा है - पहले वे 40 साल तक लेखन कार्य पर ही ध्यान केंद्रित करते थे। बाद में उन्होंने श्रम का महत्व समझा और उसका अनुभव किया और तब उन्होंने लिखा कि जितना लेखन कार्य मैंने 40 वर्ष में किया - श्रम से निखरी प्रतिभा के नाते उतना कार्य बड़ी सहजता से 15 वर्ष में किया जा सकता था।
Russia's saint, reformer, litterateur Mr. Leo Tolstoy has also experienced this truth and has written - earlier he used to concentrate on writing work for 40 years. Later he understood the importance of labor and experienced it and then he wrote that as much writing work as I did in 40 years - that much work could be done very easily in 15 years as a talent developed by labor.
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लोक व्यवहार की कला सनातन धर्म के शास्त्रों में लिखा है कि जैसा व्यवहार तुम दूसरे से अपने साथ चाहते हो वैसा ही व्यवहार दूसरों के साथ करो। जो व्यवहार तुमको अच्छा नहीं लगता वो दूसरों के साथ भी मत करो। यह वाक्य समस्त संसार में बहुत प्रसिद्ध है। इस वाक्य को हर भाषा में लिखा गया है। यह बिल्कुल सही कहा गया है। हर मनुष्य चाहता है कि...
जहाँ गरीब देश की अधिकांश जनता को पौष्टिक भोजन नहीं मिलता, वहाँ इन जनप्रतिनिधियों के लिए इतने शानशौकत के महल और उसके साथ-साथ अनेक लग्जिरियस तामजाम अलग। इनकी यह व्यवस्था शहनशाहों व राजाओं से भी अधिक भड़कीली होती है। सुविधा इनकी, परन्तु नाम देश की प्रतिष्ठा का लिया जाता है। जिस प्रतिष्ठा का ये बहाना...