उचित-अनुचित
ईश्वर सत्प्रवृत्तियों का समुच्चय है - हमारी ईश्वर के साथ अनन्य आत्मीयता सत्प्रवृत्तियों के आधार पर स्थापित हो सकती है। ईश्वरभक्त में ईश्वर की अनुरूपता तो आनी चाहिए। जीवन को निम्न स्तर पर ले जाने के लिए प्रायः पग-पग पर अनेक प्रलोभन, संकट, दबाव उपस्थित रहते हैं। उनसे निपटने के लिए सतर्कता बरतनी आवश्यक है। स्वभाव के साथ संस्कार और दुष्प्रवृत्तियाँ जन्म-जन्मांतरों से व्यक्ति के साथ-साथ आती हैं। अपने परिवेश के व्यक्ति जैसी गतिविधियाँ अपनाते हैं, वे भी प्रायः प्रभावित करती हैं; अनुकरण करना मानव का स्वभाव है। विवेक से काम लेना कुछ ही लोग जानते हैं। उचित-अनुचित का निर्णय कर पाना आसान काम नहीं है।
God is a set of Satvrittis - Our exclusive affinity with God can be established on the basis of Satpravrittis. The conformity of God should come in the devotee of God. To take life to a low level, there are often many temptations, troubles, pressures at every step. Care must be taken to deal with them. Along with nature, rites and evil tendencies come along with a person from birth after birth. The activities people in their environment adopt, they also often influence; It is human nature to imitate. Few people know how to use discretion. It is not an easy task to decide right and wrong.
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लोक व्यवहार की कला सनातन धर्म के शास्त्रों में लिखा है कि जैसा व्यवहार तुम दूसरे से अपने साथ चाहते हो वैसा ही व्यवहार दूसरों के साथ करो। जो व्यवहार तुमको अच्छा नहीं लगता वो दूसरों के साथ भी मत करो। यह वाक्य समस्त संसार में बहुत प्रसिद्ध है। इस वाक्य को हर भाषा में लिखा गया है। यह बिल्कुल सही कहा गया है। हर मनुष्य चाहता है कि...
जहाँ गरीब देश की अधिकांश जनता को पौष्टिक भोजन नहीं मिलता, वहाँ इन जनप्रतिनिधियों के लिए इतने शानशौकत के महल और उसके साथ-साथ अनेक लग्जिरियस तामजाम अलग। इनकी यह व्यवस्था शहनशाहों व राजाओं से भी अधिक भड़कीली होती है। सुविधा इनकी, परन्तु नाम देश की प्रतिष्ठा का लिया जाता है। जिस प्रतिष्ठा का ये बहाना...